प्रसिद्ध लोक गायिका मालिनी अवस्थी ने अपनी पहली किताब “चंदन किवाड़” पर संवाद किया। यह किताब उन लोक गीतों की जड़ों और सामाजिक बुनियाद की खोज करती है जो सदियों से गाए जा रहे हैं और हमारी संस्कृति की धरोहर हैं।
नई दिल्ली: लोक संगीत की जानी मानी नाम और मशहूर गायिका मालिनी अवस्थी अब एक नए किरदार, एक लेखिका के तौर पर हमारे बीच हैं। उनकी पहली किताब ”चंदन किवाड़” पर दिल्ली के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में परिचर्चा हुई, जिसमें मालिनी अवस्थी ने बताया कि वह स्तंभकार के रूप में तो पिछले 10 साल से लगातार लिख रही हैं लेकिन उनकी पहली किताब अब आई है। मुख्य रूप से इस किताब का जो स्वरूप है और जो लिखने की वजह है, वो तमाम लोक गीत जो हम गाते हैं, उनकी बुनियाद कहां है, वो लोक गीत कैसे अस्तित्व में आए, किसने लिखे, और किन परिस्थितियों के चलते ऐसे गीत सदियों से गुनगुनाए जाते रहे, तो कहीं ना कहीं वो हमारी सामाजिक परिस्थितियां हैं। भारतवर्ष के वो कौन से ऐसे चित्र हैं, जिनकी वजह से वो लोक गीत जो कहीं रिकॉर्ड नहीं हुए, उन्हें हमारी पूर्वजाएं गाती रहीं और उनसे ताकत पाती रहीं, वो बुनियाद है चंदन किवाड़। और चंदन किवाड़ जैसा कि पुस्तक का नाम भी है, तो वह पुरानी धरोहर है, जिसमें बहुत श्रद्धा है। बहुत पवित्र मन के संग आएं तो किवाड़ खोल करके ही इस संसार में प्रवेश कर सकते हैं, जहां हमारी दादी, आपकी काकी, ताई हैं। उन्होंने सदियों रक्षा की है संस्कृति की, गीत के माध्यम से, कथाओं के माध्यम से, यही है ”चंदन किवाड़”।
“गुइयाँ दरवजवा में ठाढ़ी रहूँ” के पीछे की कहानी
”चंदन किवाड़” पुस्तक के कवर पर लिखी लाइन, “गुइयाँ दरवजवा में ठाढ़ी रहूँ” के बारे में बताते हुए मालिनी अवस्थी ने कहा कि यदि मैं कुछ लिखूंगी तो उसमें संगीत न हो, ये कैसे संभव है? “गुइयाँ दरवजवा में ठाढ़ी रहूँ” तो बहुत पारंपरिक काशी की ठुमरी है। और दूसरा चंदन किवाड़ हमारे यहां पर बहुत गीतों में कहा जाता है, “खोल मोरी श्याम चंदन किवड़ियां” या “बजर पड़े राम तोए चंदन किवड़ियां”, बहुत सारे गीतों में आता है कि किवाड़ हो तो वो चंदन के ही बने हों, ऐसी कल्पना की गई है।
बतौर लेखिका क्या करना चाहती हैं मालिनी अवस्थी?
ये यहां पर लिखने का आशय ये है कि दरवाजे पर तुम आओ, कुंडी खटखटाओ, आने का मन हो तो आओ, वरना झांककर ही चाहें चले जाओ या दरवाजे पर सामने से देखकर गुजर भी जाओ। मैं यहीं खड़ी हूं। मैंने इस किवाड़ को खोलने के लिए पाठकों की प्रतीक्षा कर रही हूं। जो दर्शन करना चाहते हैं, संस्कृति के अभिलाषी हैं, उनकी प्रतीक्षा में खड़ी हूं। बतौर कलाकार, बतौर लेखिका, मैं वो दर्शन कराना चाहती हूं इस भारत का, जहां ऐसा जीवन दर्शन रहा है जिन्होंने इतने गीतों, इतनी कथाओं को जन्म दिया, जिसकी वजह से हम जो आज हैं वो हैं। इसलिए “गुइयाँ दरवजवा में ठाढ़ी रहूँ”।
पुस्तक के कवर पेज में क्या है खास बात?
और यदि आप पुस्तक के कवर पर बना चित्र देखें, तो उसमें एक आम स्त्री है, मां है, वो एक पाठिका है, अपने सिलाई-कढ़ाई भी कर रही है और कभी गा भी रही है। और इसमें कई चित्र और भी दिखते हैं। इसमें हम लोगों ने चंदन किवाड़ लिया क्योंकि एक स्त्री बहुत सारे जीवन जीती है। वो मां और पत्नी बनती है, लेकिन वो अपना होना नहीं छोड़ती जिसमें उसको साहित्य में रुचि हो सकती है, संगीत में रुचि हो सकती है, वो एक पाठिका हो सकती है। और ऐसी ही स्त्रियों की कथाएं हैं चंदन किवाड़।
मालिनी अवस्थी ने ”चंदन किवाड़” पुस्तक क्यों लिखी?
पुस्तक चंदन किवाड़ को लिखने में कितना वक्त लगा, इसके पीछे उनकी क्या सोच थी और चंदन किवाड़ जैसी पुस्तक लिखने की जरूरत क्यों पड़ी। इसको लेकर मालिनी अवस्थी ने कहा कि मैं मंचों पर आज 40 सालों से गा रही हूं और कई गीतों को बार-बार गाते हुए भी ऐसा लगता है कि उन गीतों के जरिए जैसे किरदार दिखने लगे थे। नायिकाएं कौन हैं, उनके दर्शन होने लगे थे। वो गाते-गाते गीत इतने मन में बस चुके हैं, और मुझे वो वजहें दिखने लगी थीं, जिनकी वजह से वो गाने अस्तित्व में आए होंगे। यदि “रेलियां बैरन हो जाए” लोकप्रिय गीत इसलिए उसका उदाहरण दे रही हूं, वो भी एक चैप्टर है इसमें। हमेशा लोग फरमाइश करते हैं, बहुत हंसकर फरमाइश करते हैं।
”चंदन किवाड़” लिखने में कितना समय लगा?
और यह किताब उनके लिए भी है जो संगीत प्रेमी हैं। उन्हें शायद हर गाने की परतें समझ में आएंगी। जैसे इसमें एक मेरा बहुत प्रिय पाठ है मत जा मत जा जोगी। राग भैरवी की बड़ी मशहूर बंदिश है। और जोगियों की परंपरा से लेकर के हमारे यहां लोकगीतों में भर्तृहरि गाए जाते हैं, जोगी परंपरा के गीत गाए जाते हैं तो वो नाथ परंपरा से जाकर जुड़ते हैं, सबके गुरु महागुरु गोरखनाथ हैं। और राजा भर्तृहरि की कथा से जिन्होंने नीति शतक, श्रृंगार शतक और भर्तृहरि शतक लिखा तो कैसे हमारे देश में जितने भी जोगी हुए उनको कितना सम्मान मिला? और भैरवी ही क्यों राग चुना गया? जोगी गायन की परंपराएं कितनी हैं? अनंत हैं, छत्तीसगढ़ में भी जोगी गायन है, हरियाणा में भी गाया जाता है, राजस्थान में भी गाया जाता है, हमारे बिहार और उत्तर प्रदेश में भी। तो इस तरह से कह सकती हूं कि ये संगीत, साहित्य और कहीं न कहीं मेरे भीतर जो एक अध्येता था, मेरे भीतर जो बहुत जिज्ञासु छात्र रहा है, उसकी भी एक परिणिति है चंदन के किवाड़। इस पुस्तक को लिखने में मुझे 2 से ढाई साल का समय लगा।
पुस्तक का कौन सा प्रसंग मालिनी अवस्थी के सबसे करीब?
मालिनी अवस्थी ने बताया कि चंदन किवाड़ पुस्तक में 27 अध्याय हैं, तो जाहिर है कि सभी 27 प्रसंग उनके मन के करीब हैं। इनमें चुनना मुश्किल है, लेकिन एक गीत जो हजरत अमीर खुसरो का हमेशा गाते हैं हम। “काहे को ब्याही बिदेस अरे ओ लखिया बाबुल मोरे”, जिसमें एक लड़की की विदाई का वर्णन है और यह मैं हमेशा गाती रही, मैं सोचती हूं कभी-कभी कि मैं जब छोटी थी तो मुझे लगता था मैं अपनी विदाई के लिए गा रही हूं। जब मैं परिपक्व हुई तो मुझे लगता था कि जिस भाई के लिए गा रही हूं, मेरा वह भाई है। बाद में बेटी की विदाई हुई तो मुझे लगा कि जो टाइम टेस्टेड गाने हैं, वह ऐसे ही हैं कि हर पीढ़ी पर हर एक को अपनी कहानी लगती है।


